अध्यात्म क्या है – इसे कैसे समझा जा सकता है

Last Updated on May 30, 2022 by PuraanVidya

यह एक बहुत ही गहन विषय है। परंतु इसे सरलता से भी समझा जा सकता है। अपने भीतर के चेतना तत्व को जानना व उसके स्वरूप को समझना तथा स्वयं से ही स्वयं के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करना ही अध्यात्म है। अध्यात्म का अर्थ अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग अलग हो सकता है।

हमारे भीतर स्थित आत्मा ही परमात्मा है यह सर्वविदित है। परंतु इस विषय में अलग-अलग व्यक्तियों के मत अलग अलग हो सकते हैं। अब ऐसे में अध्यात्म का अर्थ भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामान नहीं हो सकता है। अध्यात्म को केवल अपने भीतर के चेतना शक्ति द्वारा ही समझा जा सकता है। जब तक हमारी चेतना शक्ति जागृत नहीं हो जाती अध्यात्म को संपूर्ण तरीके से समझना किसी के लिए भी पूर्णत: संभव नहीं है।

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अध्यात्म को प्रदर्शित करती एक तस्वीर

हमारा शरीर जो हमारे अस्तित्व का प्रमाण है, तथा हमारी आत्मा जो इस अस्तित्व में निवास करती है, यही हमारे अध्यात्म के परम विश्लेषण का उच्चतम स्तर है। अध्यात्म का तात्पर्य आत्मज्ञान से है और यह ज्ञान अनंत है। इस अनंत ज्ञान के बाद ही हम मोक्ष तथा मुक्ति के द्वार तक जाते हैं। अध्यात्म से मिले आत्मज्ञान से हमारे मन के सभी प्रश्न समाप्त हो जाते हैं। इस आत्मज्ञान के प्राप्त होने के बाद व्यक्ति सभी प्रकार के लोभ, मोह, भय तथा अहंकार से मुक्त हो जाता है।

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ध्यान करती एक बालिका

आज के इस वर्तमान वैज्ञानिक युग में जो भी वैज्ञानिक प्रयोगों से प्रमाणित करने योग्य है, बस वही विश्वसनीय माना जाता है। इसके पश्चात कोई भी विचार जिसे प्रमाणित न किया जा सके या जो अज्ञात, अबूझ, अपरिभाषित अथवा अस्तित्वहीन हो वह मान्य नहीं है। परंतु आध्यात्मिक ज्ञान से व्यक्ति अपने सभी जिज्ञासाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

इस ब्रह्मांड में परमात्मा का अस्तित्व, उनका स्वरूप, परमात्मा से हमारा संबंध, मृत्यु के पश्चात की स्थिति के बारे में जिज्ञासा और इन सभी से अधिक स्व अस्तित्व की जानकारी आपको केवल और केवल आध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राप्त हो सकती है।

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हम क्या हैं, कौन हैं, क्यों हैं?, हमें क्या करना चाहिए?, सत्य क्या है? तथा हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? इन सभी प्रश्नों के सटीक स्पष्ट व संतोषजनक उत्तर आपको आज का आधुनिक विज्ञान भी नहीं दे सकता है। परंतु आत्मज्ञान से आप इन सभी सवालों के स्पष्ट व सटीक उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।

गीता के अध्याय 8 के प्रथम श्लोक में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से पूंछते है ”हे पुरूषोत्ताम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? और कर्म के माने क्या है? सकाम कर्म क्या है?

अर्जुन उवाच

किं तद्ब्रह्रा किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम् ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ।। 8.1।।

इस पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं…

श्री भगवानुवाच

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।। 8.3।।

परम अक्षर ब्रह्म है अर्थात जो परम है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता वही परमात्मा ही ब्रह्म है। वैदिक साहित्य में जीव को जीवात्मा तथा ब्रह्म कहा जाता है और हम सभी जानते हैं कि आत्मा अमर है। हमारे आत्मा का स्व अस्तित्व ही अध्यात्म है।

भौतिक चेतना में उसका स्वभाव पदार्थ पर प्रभुत्व जताना है किंतु आध्यात्मिक चेतना में उसकी स्थिति परमेश्वर की सेवा करना है। जब जीवधारी भौतिक चेतना में होते हैं तो उन्हें इस संसार में उनके कर्मों के आधार पर कोई न कोई शरीर धारण करना पड़ता है और शरीर धारण करने के पश्चात से ही उनका कर्म शुरू हो जाता है।

अतः अध्यात्म हमारे अवचेतन मन को जागृत करके हमारी चेतना द्वारा चिंतन तथा मनन से स्वयं के अंदर के ज्ञान तथा आत्मा के भीतर बसे परमात्मा की खोज ही अध्यात्म है।

इस सन्दर्भ में आपके विचारों का स्वागत हैं।

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