सावन में शिव आराधना का महात्म्य

Last Updated on May 30, 2022 by PuraanVidya

2019 में कांवरियों का एक समूह
2019 में कांवरियों का एक समूह

सनातन धर्म में श्रावण का पूरा माह भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। इस महीने में भोलेनाथ के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। असंख्य कांवड़ियें शिवालयों की ओर भगवान को जल चढ़ाने के लिए बम-बम का नारा लगाते हुए निकलते है। चारों ओर हर-हर महादेव, हर-हर बम-बम और ओम नमः शिवाय का मन्त्र शिवभक्ति के सावन से मन को तर कर देता है। इसी के साथ सावन में शिव पूजन इसलिए भी विशेष है, क्यों की सावन में बाबा भोले नाथ के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी दुखो का निवारण हो जाता है, और बाबा के शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्तो की सभी मनोकामनाए भी पूर्ण होती हैं। अतः सावन का यह माह शिव भक्तों के लिए अति विशेष महत्व रखता है।

श्रावण माह की महिमा

श्रावण मास श्रवण नक्षत्र पर आधारित होता है, जिसका स्वामी चन्द्रमा होता है। साथ ही सोमवार का दिन भी चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है, जो भगवान शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अतएव श्रावण के महीने में सोमवार के दिन भोलेनाथ के व्रत व पूजापाठ का विशेष महत्व है। कन्याएं इच्छानुसार वर प्राप्ति व विवाह आदि में व्यवधान के निवारण हेतु इस व्रत को करती है। अतिविशिष्ट 16 सोमवार व्रत की शुरूआत सावन के पहले सोमवार से ही की जाती है। वैसे तो इस व्रत को आमतौर पर स्त्रियाँ ही करती हैं परन्तु यदि पुरुष इस व्रत को करें तो उन्हें भी मनचाही जीवन संगिनी की प्राप्ति होती है एवं जीवन सुखमय होता है। श्रावण मास में बाबा भोलेनाथ के दर्शन पूजन की विशेष मान्यता है। इस मास में बाबा का दर्शन पूजन करने से मन शांत और प्रफुल्लित रहता है, मन के सारे क्लेशों से मुक्ति मिलती है।

aadi Yogi 1
आदि योगी

शिव का स्वरूप

भगवान शिव का स्वरूप भी उनकी ही तरह निराला व अनोखा है। अन्तरिक्ष रूपी लम्बी जटाओं से निकलती गंगा की धारा, मस्तक पर निर्मल चन्द्रमा, तीनों लोकों व तीनों काल के प्रतीक त्रिनेत्र, साँपों की माला पहने, भौतिक, दैहिक व आध्यात्मिक तापों को नष्ट करने वाला त्रिशूल व नादब्रह्म स्वरूप डमरू के स्वामी और मृत्यु पर विजय का प्रतीक मुण्डमाला धारण करने वाले शिव व्याघ्र चर्म पहनकर शरीर पर भस्म रमाये रहते है। इनका वाहन नन्दी जो धर्म का प्रतीक माना जाता है, हमेशा इनके साथ रहता है।

वैसे तो भगवान शंकर को कई नामों से जाना जाता है। कोई उन्हें शिव शंकर कहता है तो कोई महादेव, कोई भोलेनाथ ऐसे ही महादेव के अन्य कई नाम हैं जिनमें यहाँ कुछ प्रमुख नाम हैं जैसे- महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार इत्यादि वेदों में इन्हें रूद्र नाम से जाना जाता है। बाबा भोलेनाथ को संहार के देवता के रूप में दिखाया जाता है। परन्तु ऐसा भी नहीं है की महादेव के अन्दर सौम्य रूप नहीं है, उनके सौम्य रूप को भोले नाथ कहा गया है तथा उनके संहार के रूप को रूद्र नाम से जानते हैं। श्रृष्टि के उत्पति से लेकर श्रृष्टि के पाप को मिटने के लिए किये गए संहार तक पर बाबा भोलेनाथ का आधिपत्य है। भगवान शिव जी को देवों के देव महादेव की उपाधि प्राप्त है क्योंकि वे अनादी और अनंत दोनों ही हैं। वह ले के साथ-साथ प्रलय दोनों ही हैं।

भगवान शिव के रूद्र नाम का अर्थ है दुःख को हरने वाला रुद् अर्थात दुःख दर अर्थात दूर करने वाला, अतः भगवान शिव दुखों को हरने वाले हैं। भगवान शिव अधिकांशतः योगी अथवा योग मुद्रा में ही देखे जाते हैं अतः भगवान शिव जी को लोग शिव लिंग तथा मूर्ति दोनों रूप में पूजते हैं।

भक्तवत्सल भोलेनाथ

देवता, राक्षस, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य आदि सभी द्वारा पूज्य महादेव भगवान शिव सहज ही प्रसन्न हो जाते है, इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। श्रावण के महीने में प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाकर दूध से अभिषेक करना चाहिए।

Small Kid and Shiva
महादेव और एक नन्हा भक्त

भगवान शिव को यदि एक अबोध बालक भी पूजता है तो उसकी आयु, बल और बुद्धि तेज होती है। बाबा सभी के प्रिय हैं और कोई भी इनको पूज सकता है, बाबा के पूजन के लिए किसी भी विशेष प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है। वैसे नियम तो कई हैं परन्तु यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से बाबा को केवल जल भी चढ़ा दे तो उसके कष्ट और बाधाएं समाप्त होने लगती है। बाबा को दूध, बेलपत्र और धतूरे से पूजने का चलन है, जो एक समय में हर जगह सहज ही उपलब्ध होता था। परन्तु आज के इस शहरी करण के दौर में यह भी मिलना काफी दूभर हो गया है।

जल चढ़ाने के नियम

वैसे तो बाबा के पूजन का कोई विशेष नियम नहीं है। वह तो हर प्रकार से अपने भक्तों से प्रसन्न रहते हैं। परन्तु बाबा भोलेनाथ का अभिषेक करते समय हम सभी को कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जैसे जल हमेशा बैठ कर ही चढ़ाएं। जल चढ़ाते समय एक बात का विशेष ध्यान दें की जल चढ़ाते समय जल की धारा एक सामान हो, धारा टूटनी नहीं चाहिए। शिवलिंग का अभिषेक करते समय यह ध्यान अवश्य दें की द्रव्य को एक बार में ही पूरा-पूरा न डाल कर धीरे-धीरे अभिषेक करें। यदि संभव हो तो अभिषेक करने के लिए एक पात्र अवश्य ले लें। जल चढ़ाने से पहले हो सके तो अपने मस्तिस्क पर चन्दन या रोरी से तिलक अवश्य करें। इससे आपका जलाभिषेक सम्पूर्ण माना जायेगा।

।।हर हर महादेव।।

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